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kaavya manjari

Thursday, February 14, 2013

vatan ki.......................

वतन की यही हवा होती ..
बहारों की यही शमां होती..
शमां मे मशगूल दुनियां होती..
स्नेह बन्धन  की जुबां होती..
नेकी पर दुनिया फ़िदा होती..

वतन की यही हवा होती..
हसी भी सुखनुमा होती..
कर्म की यही निशां होती..
भ्रात बन्धुत्व की शमां होती..
प्यार मिलन की छटा होती..

वतन की यही हवा होती ..
नसीहत नम्र की नसीब होती..
इल्म की अनूगूंज रवा होती..
जहमत की जिक्र मे तड़प होती..
मजमून मे मुग्ध मुस्कान मधुर होती..

वतन की यही हवा होती..
मिलन की आस मे प्रभा होती.                                                                                                                       चमकते चेहरे चन्द्र से होते..
दुख दर्द की दवा यही होती..
दुनिया दर्द फ़िदा पर  होती.
झुर्रियों मे भी हसी की कली होती..

वतन की यही हवा होती.................................................

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