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kaavya manjari

Friday, March 22, 2013

होली गीत..................


गाँव हमारो वृन्दावन है |
प्यारी-प्यारी चितवन ,
न्यारी-न्यारी छुअन |
रंग में ढल जाए ,
खिल जाए... सारो उपवन |

गलियां-गलियां गोरी |
मुरली धुन पर नाचे गुजरी....
हो नाचे गुजरी, भर-भर अंजुरी...
होली खेले सखी री... |

रंग-गुलाल उड़ाए सखी री,
वो गाए फ़ाल्गुनी|
झम -झम झूमे गुजरी,
रंग-रंग में छिप जाए,
मोहे रिझाए सजनी |


रिझाए....
गोरी की मटकन ,
कमरिया लचकन,
छहरीली लटकन ,
खो जाए मेरी धड़कन |  
 मैं आऊँ बार-बार मधुवन ...
रंगों में रम जाऊँ ;
अबीर उड़ाऊँ भर भर अंजुरी...
मैं भी खेलूँ होली... संग गुजरी.....


गुजरी(गुजरिया)-नारी फ़ाल्गुनी=होली गीत..................................

Sunday, March 10, 2013

पास आओ जरा हम सम्भल जाएगे ..............................

दूरियों से तो यूँ हम बिखर जाएगे |
पास आओ जरा हम सम्भल  जाएगे ||

तेरी आँखों का अन्जन मैं ही बनूँ |
कुछ पल के लिये तो ठहर जाएगे||

आँसुओं में तेरे हम नजर आएगे |
हर दरद में तेरे हम छलक जाएगे ||

यादों में तेरी हम रचेंगे एक गजल |
गीत में ही सही गुनगना दे गजल||

गीत की इस लहर में हम मचल जाएगे |
पास आओ जरा हम सम्भल जाएगे ||

शबनमीं होठ को हम तरस जाएगे,
प्यास में तेरी हम बरस जाएगे ||

तेज धड़कन में यूँ हम फिसल जाएगे ,
साथ दे दो जरा हम सम्भल जाएगे ||

कब तलक चलेगी ये घड़ी इम्तिहां की,
इन इम्तिहानों से यूँ हम बिखर जाएगे ||

हाशिए पर खड़ी इक जिन्दगी कह रही,
कुछ तो कह दो जरा हम बहल जाएगे ||

पास आओ जरा.......................................

Thursday, March 7, 2013

हम आम हैं भई आम.............................

हम आम हैं भई आम ,
हम तो आम हो गए |
आशिकी के चर्चे ,
सरेआम हो गए |
वक्त के दायरे में ,
कुछ इल्जाम हो गये |
चन्द खुशी में इक दो
यूँ ही जाम हो गए |

हम आम हैं भई आम ,
हम तो आम हो गए |
डूबकर मदहोशी में ,
कुछ ऐसे काम हो गए |
जगह जगह जिरह जिरह में,
मेरे नाम के पर्चे,
खुलेआम हो गए|
हम तो...............

Monday, March 4, 2013

छिप छिप कर.............................

छिप छिप कर वो निकल गये,
छतरी की छहराई में !
मै निपट अकेला खड़ा रहा,
उस छतरी की परछाई में !
वो गुजर गए ,
दिल में उतर गए !
मानसमन की अमराई में ,
दिल की गहराई में !
कुछ छन्द बने ,

कुछ बंद बने !
इस व्याकुलता की लहराई में 1
छतरी भी इतराई है ,
यौवन की अंगड़ाई में ,
हुस्न की अरूणाई में !!
कान्ति मुखों की झलक रही है,
मधुरिम उस परछाई में !
दोहा ,सोरठा और गीत सवैया ,
सब सज गए हैं शहनाई में !
चिन्तन से ही कुछ चाह बढ़ी है,
व्याकुता की लहराई में 1

छिप छिप कर वो....................