अन्तर्मन में पल्लवित, स्वर्णिम भावनात्मक और वैचारिक उर्मिल उर्मियों की श्रृंखला को काव्य में ढालकर आपके मन मस्तिष्क को आनन्दमयी करने के लिये प्रस्तुत है जानकीनन्दन आनन्द की यह ''आनन्दकृति''
Friday, March 22, 2013
Sunday, March 10, 2013
पास आओ जरा हम सम्भल जाएगे ..............................
दूरियों से तो यूँ हम बिखर जाएगे |
पास आओ जरा हम सम्भल जाएगे ||
तेरी आँखों का अन्जन मैं ही बनूँ |
कुछ पल के लिये तो ठहर जाएगे||
आँसुओं में तेरे हम नजर आएगे |
हर दरद में तेरे हम छलक जाएगे ||
यादों में तेरी हम रचेंगे एक गजल |
गीत में ही सही गुनगना दे गजल||
गीत की इस लहर में हम मचल जाएगे |
पास आओ जरा हम सम्भल जाएगे ||
शबनमीं होठ को हम तरस जाएगे,
प्यास में तेरी हम बरस जाएगे ||
तेज धड़कन में यूँ हम फिसल जाएगे ,
साथ दे दो जरा हम सम्भल जाएगे ||
कब तलक चलेगी ये घड़ी इम्तिहां की,
इन इम्तिहानों से यूँ हम बिखर जाएगे ||
हाशिए पर खड़ी इक जिन्दगी कह रही,
कुछ तो कह दो जरा हम बहल जाएगे ||
पास आओ जरा.......................................
पास आओ जरा हम सम्भल जाएगे ||
तेरी आँखों का अन्जन मैं ही बनूँ |
कुछ पल के लिये तो ठहर जाएगे||
आँसुओं में तेरे हम नजर आएगे |
हर दरद में तेरे हम छलक जाएगे ||
यादों में तेरी हम रचेंगे एक गजल |
गीत में ही सही गुनगना दे गजल||
गीत की इस लहर में हम मचल जाएगे |
पास आओ जरा हम सम्भल जाएगे ||
शबनमीं होठ को हम तरस जाएगे,
प्यास में तेरी हम बरस जाएगे ||
तेज धड़कन में यूँ हम फिसल जाएगे ,
साथ दे दो जरा हम सम्भल जाएगे ||
कब तलक चलेगी ये घड़ी इम्तिहां की,
इन इम्तिहानों से यूँ हम बिखर जाएगे ||
हाशिए पर खड़ी इक जिन्दगी कह रही,
कुछ तो कह दो जरा हम बहल जाएगे ||
पास आओ जरा.......................................
Thursday, March 7, 2013
Monday, March 4, 2013
छिप छिप कर.............................
छिप छिप कर वो निकल गये,
छतरी की छहराई में !
मै निपट अकेला खड़ा रहा,
उस छतरी की परछाई में !
वो गुजर गए ,
दिल में उतर गए !
मानसमन की अमराई में ,
दिल की गहराई में !
कुछ छन्द बने ,
कुछ बंद बने !
इस व्याकुलता की लहराई में 1
छतरी भी इतराई है ,
यौवन की अंगड़ाई में ,
हुस्न की अरूणाई में !!
कान्ति मुखों की झलक रही है,
मधुरिम उस परछाई में !
दोहा ,सोरठा और गीत सवैया ,
सब सज गए हैं शहनाई में !
चिन्तन से ही कुछ चाह बढ़ी है,
व्याकुता की लहराई में 1
छिप छिप कर वो....................
छतरी की छहराई में !
मै निपट अकेला खड़ा रहा,
उस छतरी की परछाई में !
वो गुजर गए ,
दिल में उतर गए !
मानसमन की अमराई में ,
दिल की गहराई में !
कुछ छन्द बने ,
इस व्याकुलता की लहराई में 1
छतरी भी इतराई है ,
यौवन की अंगड़ाई में ,
हुस्न की अरूणाई में !!
कान्ति मुखों की झलक रही है,
मधुरिम उस परछाई में !
दोहा ,सोरठा और गीत सवैया ,
सब सज गए हैं शहनाई में !
चिन्तन से ही कुछ चाह बढ़ी है,
व्याकुता की लहराई में 1
छिप छिप कर वो....................
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