शक्ति से संचित कर मुझे ,
पाप से वंचित कर मुझे |
जोश से भर दो मुझे ,
न अनीति से हो डर मुझे |
शब्द सागर में वेग दो ,
वक्त का हर तेज दो|
पवन का संवेग दो ,
दीप का हर तेज़ दो|
कर सकूँ रोशन ज़हाँ ,
लेखनी में वो नूर दो |
बन सकूँ इन्सान मैं,
ऐसा वो कोहिनूर दो |
बैर का प्रतिशोध मैं,
प्रेम से करता चलूँ |
व्यर्थ में जाया नहीं ,
हर पल जिन्दगी का जीता चलूँ |
कठिनाइयों में साहस बढ़े ,
शैल शिखा से पाला पड़े |
मेरे हौसलों को पहचान मिले,
नये आयाम को गढ़ता चलूँ ......
शक्ति से संचित ..............................
पाप से वंचित कर मुझे |
जोश से भर दो मुझे ,
न अनीति से हो डर मुझे |
शब्द सागर में वेग दो ,
वक्त का हर तेज दो|
पवन का संवेग दो ,
दीप का हर तेज़ दो|
कर सकूँ रोशन ज़हाँ ,
लेखनी में वो नूर दो |
बन सकूँ इन्सान मैं,
ऐसा वो कोहिनूर दो |
बैर का प्रतिशोध मैं,
प्रेम से करता चलूँ |
व्यर्थ में जाया नहीं ,
हर पल जिन्दगी का जीता चलूँ |
कठिनाइयों में साहस बढ़े ,
शैल शिखा से पाला पड़े |
मेरे हौसलों को पहचान मिले,
नये आयाम को गढ़ता चलूँ ......
शक्ति से संचित ..............................
waaah waaah bhot achacha
ReplyDeleteबेहतरीन रचना !! आनंद बधाई.
ReplyDeletebahut badhiya
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