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kaavya manjari

Tuesday, April 22, 2014

चुनावी चौराहों .....................

चुनावी चौराहों और चौपालों पर
चैतन्य वेग का रेला है

दूर-दराज सूनसानों में भी
कैसा जमघट कैसा मेला है

वादों में लहरा के चलते हैं
कभी खुद औहदों पर इतराने वाले

आरोपों और प्रत्यारोपों का
रोचक खेल दिखाने वाले

गली-गली और बस्ती-बस्ती
शहर की सकरी गलियों 

सड़क किनारे झोपड़ पट्टी में 
भी दिख  जाते हैं..............

कभी-कभी कहीं-कहीं
ये दिखने वाले....................

2 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (27-04-2014) को ''मन से उभरे जज़्बात (चर्चा मंच-1595)'' पर भी होगी
    --
    आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
    सादर

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