दिन के ढलते ही माँ की इक फरियाद होती है|
जल्दी घर आ जा तूँ तेरी अब याद होती है||
खाने की ताजगी की भी कुछ मियाद होती है|
तेरे बिन छप्पन भोग की हर चीज बेस्वाद होती है||
देखो गाँव से बाबा न जाने कब से आए हैं|
माटी में लिपटी अठखेलियों की ही याद होती है||
धीर के रुखसार पे अब बेचैनियों का डेरा है|
मुन्तजिर आँखों में मिलन की मुराद होती है||
दिन के ढलते ही माँ की इक फरियाद होती है|
स्वप्निल इमारत की कुछ तो बुनियाद होती है||
दिन के ढलते ही......................
मुन्तजिर - इन्तजार