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kaavya manjari

Sunday, March 1, 2015

होली के रंग .............................

होली के रंग में रंगे,   जाने माने रुप।
मिटा द्वेष ऐसे मिले,बरसों बिछड़े भूप।।
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घृणा को तज  के हुये,प्रियवर के स्वरूप।
और मुरझाए खिल उठे,कुसुमकोश पे धूप।।
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बूँदे ढलकी हँसी की,सूखे अधर अकूत
धरणी भी हर्षित हुई,जैसे मिले सपूत।।
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और अबीर गुलाल से,कर गालों को लाल।
थापों ठुमकों से रचे,थिरक उठे नंदलाल।।

Saturday, January 17, 2015

उड़ी पतंग अरमानों की.......................


उड़ी पतंग अरमानों की...... वो नील गगन आनंदित है
उन्मुक्त उमंग तूफ़ानों की. वो वेग पवन आह्लादित है

निर्बोध सही उन बच्चों सा  अंगारों का मर्दन करना है
सखी बनूँ   उड़ानों की वो सुरभित सुमन उल्लासित है